गजल – मानन्धर अभागी, सलम्बुटार साँखु



मेरा शिकायत न आपसे न भगवान से

मेरा शिकायत केवल उस हैवान से

दूरसे नजरपे नजर नजाने डाल रहा था

नजदिक होरही है ए होँठोँ कि मुस्कान से

मेरी ए जवानीमे लोहा जैसा जवान मिला

साथ देरहा है खेतोँपे शुक्रगुजरा किसान से

वो तो भवँरा निकला मुझे मालुम नहिँ था

जिन्दगीमे ऐसा क्युँ पुछ रही हुँ वैमान से

जिसने ए तोहफा दिया जिन्दा वो मरगया

जल रहा हुँ आज आनेवाली पहेचान से ।।


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