मुसाफीर– मानन्धर अभागी, सलम्बुटार साँखु

चलता फिरता एक मुसाफीर, हम क्या सोचना है... हम है कौन आपका वातेँ जो वनाते है व सच्चे दिलवाले आदमी नहि ए वातेँ सहि है मुलाकात होता है तो वश ख्यालो सिफकक ख्यालोमे हमे एक दोश्त सम्झे या दुश्मन हर आदमीको दोश्त तो जरू होता है जिन्दामे हो या मरनेके वक्त पर ईसिलिए हम सामेल होता रहता हु इक नई दोश्त आपका, मुसाफीर ।

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